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9/08/2009

एक सपना जो साकार नहीं हो सका

वर्ष 1947 में जब भारत आजाद हुआ था तो स्‍वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले स्‍वतंत्रता सेनानियों ने ना जाने क्‍या क्‍या सपने देखे होंगे। उन्‍होंने सोचा होगा कि आजादी हासिल होने के बाद हम खुले वतन में सांस ले सकेंगे। सारी सुविधा हमें मिल पायेगी। लेकिन आज उसका ठीक उल्‍टा हो रहा है। स्‍वतंत्रता सेनानियों को अपना हक हासिल करने हेतु लड़ाई लड़नी पड़ रही है। पिछले दिनों हमारे शहर में स्‍वतंत्रता सेनानियों व उनके आश्रितों की एक बैठक आयोजित की गई। बैठक में उन्‍होंने कहा कि हम किसी भी समस्‍या का आवेदन लेकर प्रशासन के पास जाते हैं तो प्रशासन द्वारा हमारे आवेदनों को तरजीह नहीं दिया जाता है। ऐसा क्‍यों ------
जिन स्‍वतंत्रता सेनानियों के बदौलत देश आजाद हुआ। जो अपनी जान की फिकर किए बिना आजादी की लड़ाई में कूद गए थे। उनके साथ ऐसा सौतेलापन व्‍यवहार क्‍यों। आखिर सरकार और प्रशासन को कौन समझाए। सभी सत्‍ता के भूखे हैं। आज हर कोई नेता मुख्‍यमंत्री बनना चाह रहा है। हर प्रशासन के नुमाईंदे चाहते हैं कि हमारी भी एक बड़ी सी कोठी हो::::::हमारी भी दो तीन अच्‍छी अच्‍छी कारें हों::::: इन्‍हीं सोच और इन्‍हीं सोच को साकार करने में इनके समय कट जाते हैं। भला दूसरों की समस्‍या से इन्‍हें क्‍या लेना देना::::
नेताओं की बात तो मत ही कहिए तो बेहतर होगा:::: आज जो आपके वोट के बदौलत सत्‍ता पर काबिज हुए हैं ::::: वो कल पहचानेंगे तक नहीं :::: लेकिन एक बात है वोट लेने के समय वो आपके पास मिन्‍नतें मांगने जरूर जायेंगे::::
अब आप ही बतायें जिन्‍हें देश भक्ति से कोई लेना देना नहीं वो सत्‍ता पर बैठ कर क्‍या देश की सेवा कर पायेंगे::::
वो स्‍वतंत्रता सेनानियों को क्‍या सुविधा मुहैया करा पायेंगे::::::
वो जवान शहीदों को क्‍या दे सकते हैं:::::::::