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5/30/2013

हर घड़ी सच्चाई का राह अपनाते रहे
वो इस सच्चाई को झुठलाते रहे 
ना समझा जिन्दगी के सच्चे लम्हे को 
वो तो भगवान को भी दरकिनार करते रहे 
इंसान की झूठी फितरत को ना समझना यारी
हर सच्चाई की आती है जीत की बारी  

1/24/2013

बदलते हालत

आप कुछ चाहते हैं , आपके चाहने वाले कुछ और चाहते हैं 
फर्क सिर्फ इतना है दो दिल अलग अलग होते हैं 
हर दिल के सोचने का तरीका अलग होता है
कोई कुछ और कहता आप कुछ और कहते
कभी कभी इसी चक्कर में टक्कर भी हो जाती है
कुछ बर्बाद हो जाते तो कुछ आबाद
इस हालत में तो कभी आप खो जाते हैं तो कभी आपको कोई खो देता 
बाद के हालत पर कोई गौर नही करता 
यदि करता तो कभी ऐसे हालत ही नही बनते 
हर साम को सुबह का इंतजार होता है 
कोई कभी इस डूबता सूरज से नही सीखता 
सभी उगते सूरज से ही आशा रखते है
सबको पता है कुछ ही घंटो के बाद यह डूब जायेगा 
हर हालात में इन्तजार बड़ी कामयाबी का द्योतक होता है
हर समय भी हर आदमी का नही होता
जैसे घड़ी की सुई अपना जगह बदलती है 
उसी तरह समय भी आदमी को बदल देता है 
जिसने समय को अपना दामन बनाया
उसी ने अपना मुकद्दर बनाया

अजय कुमार झा
प्रभात खबर 
देवघर

4/05/2012

धरम पर संकट

हर जगह से हार कर आदमी धरम के रास्ते को अपनाता है. लेकिन जब धर्म ही पीड़ित हो तो आदमी क्या कर सकता है. गीता में कृष्ण ने कलयुग के बारे में  सच ही कहा था जो आज सच हो रहा है. आज के युग में धरम को बचा कर रखने वाला मनुष्य सुरक्षा की भीख मांग रहा है. वो भी अपने लिए नही एक मंदिर के लिए और वहां आने वाले धर्मात्माओं के लिए. बाबा भोले की नगरी देवघर धर्मों की नगरी कही जाती है. यहाँ एक पुजारी मंदिर की सुरक्षा के लिए अनसन  पर बैठ गये है. आखिर इसे कहां का न्याय कहा जाये. आखिर कोन सी मज़बूरी हुई उसकी जो उसे अनसन पर जाना पड़ा. पुजारी जी कहते है जिले के सारे अफसरों को कहते कहते थक गया लेकिन उनहोंने एक ना सुनी. थक कर अनसन पर जाना पड़ा.
आज धरम भी संकट में आ गया है. इसे कोन बचाएगा.

8/28/2010

हर मोड़ पर मंडराती मौत

यूं कहें तो हर मोड़ पर मौत मंडराती है। जरा सी चूक व असावधानी के कारण आप मौत को गले लगा सकते हैं। आये दिन हर गली, हर मार्ग पर मौत मुंह बाये खड़ी रहती है। यदि आप जरा सा भी चूके तो पलक झपकते ही आप गए। समाचार पत्रों व टीवी चैनलों पर रोज दर्जनों दुर्घटनाओं के समाचार सुनने को मिलेंगे। खास कर छोटे शहरों में जहां यातायात के नियम सिर्फ दिखावे के लिए होते हैं। सच कहें तो आज कल 50 फीसदी लोगों को अच्‍छी तरह वाहन चलाने आता ही नहीं। वे तो रिश्‍वत देकर वाहन चलाने का लाईसेंस विभाग से बनवा लेते हैं। मुश्किल से आपको 2 से ढ़ाई हजार खर्च होंगे आपको वाहन चलाने आता हो या नहीं लाईसेंस आपको मिल जायेगा। चलिए यह भी मान लेते हैं कि आप वाहन चलाने भली भांति जानते हैं, यातायात के नियम भी आपको पता है लेकिन जब आप वाहन चला रहे होते हैं तो बगल वाले वाहन चालक की क्‍या गारंटी है कि वो वाहन चलाने जानता हो उसे नियम पता हो। वो आपके लिए खतरा बन सकता है। साल भर में देवघर जिले में वाहन दुर्घटना में 1 दर्जन से ज्‍यादा लोगों की मौत होती है। चाहे कारण जो भी हो, यातायात नियम के नाम पर सिर्फ थोथी दलीलें पढ़ी जाती हैं। आज हर शहर में युवा वर्गों में तेज गति से मोटरसाईकिल चलाने का क्रेज है। यह उनके लिए प्रेस्‍टीज बन गया है। इन्‍हें संभालने की जरूरत है।

8/27/2010

लेह का जलजला

लेह के जलजले ने सैकड़ों परिवार का चूल्‍हा ठंडा कर दिया। कई अनाथ हुए, कई महिलाएं असमय विधवा हो गयी, कई मां की गोदें सूनी हो गयी। सरकार ढि़ढोरा पीट कर कहती है मनरेगा के कारण मजदूर रोजी रोटी के लिए बाहर नहीं जा रहे। यदि उन मजदूरों को अपने गृहक्षेत्र में ही दाना पानी मिलता तो वे लेह क्‍यों जाते।
मेरा जिला छोटा है, यहां का जिला प्रशासन भी मनरेगा में अच्‍छे प्रदर्शन के लिए प्रधानमंत्री से सम्‍मान पुरस्‍कार ले कर आया है। यह सम्‍मान पुरस्‍कार शायद झूठा है। यदि मनरेगा की स्थिति अच्‍छी होती तो यहां के मजदूर लेह क्‍यों जाते। लेह के जलजले के कुछ दिनों के बाद से ही धीरे धीरे यह बात छन कर आ रही है कि यहां के मजदूर लेह में फंसे हुए हैं। उनका ना तो कोई अता पता चल रहा है ना ही वे ही कोई अता पता अपने परिवार का लगा रहे हैं। इसके बारे में अभी तक प्रशासन नहीं सोच रही है। उनका पता लगाना किसकी जिम्‍मेवारी है। यदि वो जिंदा हैं तो उन्‍हें घर लाने का काम कौन करेगा। यह जिला प्रशासन का काम है।
कोरे उपलब्धियों का बखान करने में सरकार व प्रशासन को जरा भी झिझक महसूस नहीं होती। शायद उनकी यह पुरानी बीमारी है। तो फिर विकास की बात तो बेमानी ही होगी। झारखंड तो भ्रष्‍टाचार का महासागर है। यहां के हर महकमों में भ्रष्‍टाचार चिपका है।
यह बात समझ में नहीं आती जो जनप्रतिनिधि जनता के बीच से चुने जाते हैं वो क्‍या कर रहे हैं। उन्‍हें क्‍या जब चुनाव आये बस जीत जायें यही उनका उद्देश्‍य होता है इसके बाद जनता को दाना पानी मिले या ना मिले इससे उन्‍हें क्‍या मतलब।
भोली जनता भी उनके लुभावने वादों में फंस जाते हैं। जिसका परिणाम यह होता है सब कुछ रहने पर भी अभाव की जिंदगी उनका साथी बन जाता है।

8/06/2010

लावारिश लाशों को दो गज कफन भी मयस्‍सर नहीं

हर मनुष्‍य की यह ख्‍वाहिश होती है कि जब तक वो जिंदा है तब तक वह सुखी पूर्वक जी सके और जब वह मृत्‍यु प्राप्‍त कर ले तो उसकी अंतिम विदाई चार कांधो से हो । उसका अंतिम संस्‍कार भी धार्मिक रीति रिवाज के साथ हो। चाहे वह हिन्‍दु हो या मुसलमान, सिक्‍ख या ईसाई। सभी धर्मों में अंतिम संस्‍कार का रिवाज है। महापुरुषों ने शायद सही कहा है कलियुग में मनुष्‍य अपना ईमान खोता जा रहा है। सही भी है उसका साक्ष्‍य यह तस्‍वीर है। मनुष्‍य इतना संवेदन हीन हो गया है कि वह मनुष्‍य को उसका हक नहीं दिला पा रहा। कल तक यही मनुष्‍य जो सबके साथ घूमता फिरता था आज उसकी यह स्थिति, बहुत शर्मींदगी की बात है। तस्‍वीर दिल दहला देने वाली है। मनुष्‍य के मरने के बाद यह स्थिति शायद इसके बारे में किसी ने सोचा भी नहीं होगा। यहां ना तो उसे दो गज कफन मिला ना ही दो गज जमीन। वह भी धार्मिक नगरी देवघर में। अखबार वालों ने भी इसे प्रमुखता से छापा। उनकी भी मंशा रही कि शायद खबर से किसी की आंख खुल जाय। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। देवघर शहर जहां द्वादश ज्‍योतिर्लिंगों में एक बाबा बैद्यनाथ विराजमान हैं। उस शहर में प्रशासन इतना संवेदनहीन हो गया है कि लावारिश मरने वालों को वह दो गज कफन मयस्‍सर नहीं करा पा रहा। जबकि प्रशासन को लावारिश लाशों के अंतिम संस्‍कार के लिए पैसे भी हैं। फिर भी इतनी शर्मनाक संवेदनहीनता। इस तस्‍वीर को जरा गौर से देखिए, ये एक लावारिश लाश है जिसे कुत्‍ते नोच नोच कर खा रहे हैं। बगल में एक और लाश पड़ी है सफेद रंग के बोरे में बंद, साथ ही यहां से ठीक 40 गज की दूरी पर एक और लाश पड़ी थी। आखिर क्‍या कसूर था इनका, जो मरने के बाद इन्‍हें कुत्‍तों चीलों के हवाले कर दिया गया। कसूरवार भी हो तो जब तक वह जिंदा है तब तक उसे सजा दी जा सकती है। लेकिन मरने के बाद ऐसी सजा देना यह किस कानून के पन्‍ने में लिखा है। इसका जवाब कौन देगा।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
ऐसी परिस्थिति दुबारा ना हो इसका क्‍या उपाय है। इसका एक ही उपाय है, एकता पूर्वक खड़ा होने का। हम जागरूक होंगे तो जग जागरूक होगा।

7/26/2010

हर हर महादेव

26 जुलाई को विश्‍व प्रसिद्ध श्रावणी मेला शुरू हो गया है। पूरे महीने कांवरियों का जनसैलाब देवघर में उमड़ेगा। उत्‍तरवाहिनी गंगा सुल्‍तानगंज से पांव पैदल चल कर प्रतिदिन हजारों की संख्‍या में कांवरिये बाबाधाम पहुंचेंगे। शिवभक्‍तों को किसी तरह की परेशानी ना हो इसके लिए प्रशासन, स्‍वयं सेवी संस्‍था व आम जन मुस्‍तैद रहेंगे। सभी उनकी सेवा कर पुण्‍य बटोरने की जद्दोजहद में लगे रहेंगे। सुल्‍तानगंज से लेकर देवघर तक शिवभक्‍तों के सेवार्थ हजारों शिविर लगे रहते हैं। लगभग शिविरों में कांवरियों की नि:शुल्‍क सेवा की जाती है। उनके ठहराव, भोजन, चिकित्‍सा सेवा, नींबू पानी, गरम पानी, शर्बत की समुचित व्‍यवस्‍था की जाती है। प्रशासन की ओर से भी भरपूर सेवा की जाती है। पूरे महीने आम जन भी कांवरियों की सेवा में व्‍यस्‍त रहते हैं।
एक बता दूं कि यहां एक कहावत चरितार्थ है। एक महीने कमाओ साल भर खाओ।
दूर दूर से लोग पूरे महीने यहां कमाने आते हैं। छोटे छोटे दुकानों की भरमार रहती है। कोई शहर का कोई हिस्‍सा खाली नहीं रहता। पूरे महीने अरबों का व्‍यवसाय होता है। सबसे ज्‍यादा प्रसाद के रूप में बिकने वाले पेड़ा व इलाईची दाना का। रोज करोड़ों का व्‍यवसाय होता है। और हो भी क्‍यों नहीं लाखों की भीड़ जो जुटती है। श्रावण महीना में इस तरह का नजारा कहीं देखने को नहीं मिलता।
बाबा बैद्यनाथ की पूजा के लिए पूरे महीने रोजाना लंबी कतार लगी रहती है। विशेषत: सोमवार व मंगलवार के दिन। कहते हैं पहले इस तरह की भीड़ नहीं जुटती थी। धीरे धीरे बदलाव आया और मेला का फलक भी बढ़ा। मीडिया कर्मी भी पूरे महीने सावन की खबरों के संकलन में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते। वे भी अपना फलक बढ़ाने में लगे रहते हैं।
सुल्‍तानगंज से देवघर तक पांव पैदल आने वाले कांवरियों की कतार पूरे महीने लगी रहती है। कतार ऐसा कि कोई एक डब्‍बा यदि कांवरियों के हाथ दे दिया जाय तो एक दूसरे को बढ़ाते बढ़ाते वह डब्‍बा देवघर आ जायेगा।
रावणेश्‍वर बैद्यनाथ की महिमा ही निराली है। सभी बाबा भोले की मस्‍ती में मस्‍त रहते हैं सभी बोल बम की रट लगाए रहते हैं। उनके मुख से बोल बम का शब्‍द निकला कामन हो जाता है। एक दूसरे को बम कहकर ही पुकारते हैं।